अयोध्या केस से 1994 से जुड़े राजीव धवन मुस्लिम पक्ष के वकील, उनके साथ मीनाक्षी अरोड़ा, शेखर नाफड़े, जफरयाब जिलानी, निजामुद्दीन पाशा हिंदू पक्ष के वकील के. पाराशरन, सीएस वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, पीएन मिश्रा और हरिशंकर जैन हर दिन 22-22 घंटे काम कर रहे

नई दिल्ली- अयोध्या राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद की सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर पूरे देश की नजर है। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ इस मामले की 6 अगस्त से लगातार सुनवाई कर रही है। भास्कर APP ने इस मामले में अदालती कार्यवाही से इतर पहलुओं को जानने के लिए पक्षकारों और वकीलों से बात की। कोर्ट रूम से बाहर उनके साथ रहकर केस का दूसरा अनछुआ पहलू भी समझा। यह देखा कि वे पिछले 6 अगस्त से केवल अदालती जिंदगी ही जी रहे हैं। हिंदू पक्ष के वकील बाबरनामा-आईन, अकबरी-कुरान पढ़ रहे हैं तो मुस्लिम पक्ष के वकील वाल्मीकि रामायण और स्कंध पुराण।



हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील सीएस वैद्यनाथन सुबह 4 बजे तक केस की तैयारी करते हैं तो मुस्लिम पक्ष के राजीव धवन रात-रातभर नोट‌्स पर काम करते हैं। धवन कई बार रात 2 बजे से केस नोट्स पढ़ना और ठीक करना शुरू करते हैं। सुबह 8 बजे तक सीट से नहीं उठते। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट चले जाते हैं। शाम को अगले दिन की तैयारी शुरू करते हैं। ये केवल वरिष्ठ वकीलों की दिनचर्या नहीं है, बल्कि इनके 50 सहयोगी वकीलों का खाना-पीना भी दफ्तर में ही हो रहा है। दोनों पक्षों के वकील कोर्ट और ऑफिस के अलावा किसी कार्यक्रम में या कहीं घूमने आखिरी बार 2 अगस्त से पहले गए थे। 2 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट ने रोज सुनवाई की तारीख 6 अगस्त मुकर्रर की। इसके बाद से कोर्ट और ऑफिस में केस की तैयारी ही इनकी जिंदगी है। डेढ़ महीने में दोनों पक्षों के वकील तकरीबन 10 लाख रुपए की किताबें खरीद चुके हैं। करीब 1000 किताबों के पन्ने पलट रहे हैं।


हरी अनन्त हरी कथा अनन्ता:-


प्रातः 4 बजे टीम घर जाती है, फिर बकील नोट्स पर करते है ।


 वकील रोजाना औसतन 2 घंटे की ही नींद ले पाते हैं
हिंदू पक्ष के वकील के. पाराशरन, सीएस वैद्यनाथन, रंजीत कुमार, पीएन मिश्रा और हरिशंकर जैन हैं। इनके सहयोगी बताते हैं कि अगर 37 दिनों तक लगातार चली सुनवाई की बात की जाए तो हम कुल 74 घंटे यानी दिन में दो घंटे से ज्यादा आराम नहीं कर सके हैं। केवल शनिवार-रविवार को 4-4 घंटे सो पाते हैं। राेज सुनवाई के चलते केस पर रिसर्च और धर्म पर दी गईं दलीलों को क्रॉसचेक करना पड़ता है। वरना सही और गलत का रेफरेंस कैसे मिलेगा? यह केस धर्म से जुड़ा है तो उस धर्म की दलीलों को समझना, पढ़ना और नोट‌्स बनाना जरूरी है। फिर अगले दिन बहस और बहस का जवाब बनाना होता है।


वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन बताते हैं कि रात 2 बजे से पहले कोई भी सहयोगी घर नहीं जाता। सहयोगियों के घर जाने के बाद सुबह 5 बजे से हम फिर तैयारी शुरू कर देते हैं। कई बार तो नोट्स के प्रिंट और उसके सेट इतने होते हैं कि एक घंटे का समय उसी में लग जाता है। सुबह 8 बजे तक चाय पीकर तैयार होते हैं और 9 बजे तक कोर्ट के लिए निकल जाते हैं। सुबह 10.30 से शाम 5.15 तक कोर्ट की सुनवाई के बाद कोर्ट से बाहर होते-होते 6 बजते हैं। ऑफिस पहुंचकर 7 बजे से फिर केस की तैयारी शुरू हो जाती है। तब जाकर रोज सुनवाई की तैयारी हो पा रही है। कई बार तो वैद्यनाथन सुबह के 4 बजे तक केस नोट्स की स्टडी करते रहते हैं।



37 दिन से पूजन भी नहीं कर सके, लेकिन बाबरनामा पढ़ रहे हैं
1987 से इस मामले की पैरवी कर रहे हिंदू पक्ष के वरिष्ठ वकील हरिशंकर जैन का दफ्तर गाजियाबाद के इंदिरापुरम में है। हम उस ऑफिस में पहुंचे तो वे बाबरनामा पढ़ रहे थे। उनके 5 सहयोगी भी मुस्लिम धर्म की अलग-अलग किताबों के पन्ने पलट रहे थे। उनसे पूछा तो कहने लगे कि मुस्लिम पक्ष की दलीलों का उत्तर देना है, इसलिए तीसरी बार बाबरनामा पढ़ रहा हूं। पहले रोज दो घंटे पूजन करता था, लेकिन दो महीने से पूजन नहीं कर सका। अब रामलला का केस ही पूजन हो गया है।



आखिरी बार 1 अगस्त को परिवार के साथ खाना खाया था
हिंदू पक्ष के एडवोकेट हरिशंकर जैन बताते हैं कि जैसे ही कोर्ट ने 2 अगस्त को रोज सुनवाई का फैसला सुनाया, वैसे ही ऑफिस को वॉर रूम बना लिया गया। परिवार के साथ आखिरी बार दो महीने पहले 1 अगस्त को खाना खाया था। तब से ऑफिस में ही टिफिन मंगा लेते हैं और सहयोगियों के साथ केस की तैयारी करते हुए खाना खा लेते हैं। कोर्ट के लंच टाइम में भी 15 मिनट में फ्रेश होकर फिर केस की तैयारी करने लगते हैं। कार्यक्रम अटेंड करना तो दूर किसी रिश्तेदार या परिचित से मिल भी नहीं सके। वहीं, मुस्लिम पक्षकार के वकील राजीव धवन के सहयोगी बताते हैं कि हमारा खाना-पीना ही नहीं, पार्टी भी धवन साहब के ऑफिस में ही हो रही है। धवन साहब ने तो सुप्रीम कोर्ट में भी कह दिया था कि रोज सुनवाई हो रही है तो सहयोगियों को घर पर पार्टी भी देना पड़ती है।



6 अगस्त से घर नहीं गया
1986 से लखनऊ कोर्ट में इस मामले की पैरवी कर रहे वरिष्ठ वकील जफरयाब जिलानी का वॉर रूम है हैदराबाद से सांसद असदुद्दीन ओवैसी का दिल्ली स्थित बंगला। जब हम पटेल चौक स्थित ओवैसी के बंगले पर पहुंचे तो जिलानी वाल्मीकि रामायण में से केस के लिए तथ्य खोज रहे थे। उन्होंने बताया कि कल हमें (मुस्लिम पक्ष)अपना जवाब देना है, इसलिए तैयारी की जा रही है। वे बताते हैं कि राजीव धवन तो ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। वे किताबें खूब पढ़ते हैं। जिलानी बाते हैं कि जैसे ही इस केस की रोज सुनवाई शुरू हुई, वे दिल्ली में ही डेरा जमाए हैं। घर जाना तो दूर घर वालों की खैरियत लेने का भी समय नहीं मिलता।



राजीव धवन का कितना सच कि बिना फीस पैरवी करते हैं?
जफरयाब जिलानी बताते हैं कि राजीव धवन हमारे केस से 1994 में जुड़े थे। तब से आज तक बिना फीस पैरवी कर रहे हैं। हमने एक बार मुंशी को रुपया दिया तो धवन साहब ने लौटा दिया। इस मामले में राजीव धवन बताते हैं कि उन्हें रुपयों की कोई चाहत नहीं है। वे वेतन पर काम करने जैसा व्यवहार नहीं करते। ये सही है कि एक बार मुस्लिम पक्ष ने पैसा देने का प्रयास किया था तो मैंने साफ इंकार करने के साथ लिखकर भी दिया था कि रुपया वापस दे रहा हूं ताकि रकम सही जगह पहुंच जाए।


वकील का दावा- बकालत का खर्चा अरब देश भी चुकता है
मन्दिर के पक्षकार वकील हरिशंकर जैन बताते हैं कि उन्होंने 1989 में लखनऊ से इस केस की पैरवी शुरू की थी, लेकिन आज तक एक पैसा भी नहीं लिया। वे कहते हैं कि हम तो राम के लिए लड़ रहे हैं तो पैसा कैसे ले सकते हैं?